"एक मां की तरह साथ – साहस, संवेदना और सच्चा रिश्ता"

“We Write. We Rise” – Voices from Within by Our Writers

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"एक मां की तरह साथ – साहस, संवेदना और सच्चा रिश्ता"

— नंदिता आकाश चौबे

"रिश्ते खून से नहीं, दिल से निभाए जाते हैं। और अगर दिल से निभाया जाए, तो एक सास भी मां बन सकती है।"

ग्वालियर शहर के एक हँसते-खिलखिलाते परिवार की कहानी है ये — एक ऐसा परिवार जिसे प्रसिद्ध हास्य कवि प्रदीप चौबे जी ने वर्षों तक अपनी उपस्थिति और प्रतिभा से जीवंत बनाए रखा। उनकी पत्नी विनीता चौबे, दो बेटे आकाश और आभास, और उनकी बहुएं — एक सम्पूर्ण और खुशहाल संसार।

लेकिन जीवन सदा एक जैसा नहीं रहता।

एक दिन अचानक छोटी-सी उम्र में आभास चौबे का ब्रेन हैमरेज से निधन हो गया। इस असहनीय क्षति से कवि प्रदीप चौबे इतने टूट गए कि सिर्फ चार महीने बाद, वे भी इस दुनिया को छोड़ गए।

अब इस घर में रह गईं दो महिलाएं — एक मां, जिसने अपने बेटे और पति दोनों को खोया... और एक बहू, जिसने अपना जीवनसाथी।

लेकिन इसी अंधेरे में उम्मीद की एक लौ जलती है – विनीता चौबे जी की संवेदना, ममता और हिम्मत।

उन्होंने बहू वर्षा को बहू नहीं, बेटी माना।

जहां अक्सर देखा जाता है कि ऐसी परिस्थितियों में बहुएं मायके लौट जाती हैं, वहां विनीता जी ने वर्षा का हाथ थामे रखा, उसे नई ज़िंदगी की राह दिखाने की ठान ली।

एक नई शुरुआत की पहल

सालों तक विनीता जी ने इस सोच को दिल में पाले रखा कि "मेरी बेटी जैसी बहू को फिर से मुस्कुराने का हक़ मिलना चाहिए।"

और वो दिन आया – 11 मई 2025 को, पूरे परिवार की रजामंदी और शुभकामनाओं के साथ, वर्षा का पुनर्विवाह उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी चेतन जैन से हुआ।

ये सिर्फ एक शादी नहीं थी – ये था साहस का एक मिशाल, समाज को दिया गया एक स्पष्ट संदेश कि "दूसरा अवसर भी पहला जैसा पवित्र होता है।"

एक सास, जो बनी मां

जहां समाज में अब भी बहुओं को दहेज के लिए सताया जाता है, वहां विनीता जी का यह क़दम हम सबके लिए प्रेरणा है। उन्होंने ना सिर्फ अपने दुःख को सहा, बल्कि अपने बहू-बेटी की ज़िंदगी को फिर से खुशियों से भरने का रास्ता खोला।

सीखने योग्य बातें

✅ बहू सिर्फ बहू नहीं होती – वह बेटी भी बन सकती है, अगर सास मां की तरह अपनाए।
✅ महिलाएं जब एक-दूसरे की ताकत बनें, तब समाज बदल सकता है।
✅ दूसरी पारी की शुरुआत अपराध नहीं, अधिकार है।

अंत में एक संदेश

हमारे समाज में जब तक महिलाएं ही महिलाओं का साथ नहीं देंगी, तब तक बदलाव अधूरा रहेगा।

विनीता चौबे जी का ये निर्णय न केवल साहसी था, बल्कि अनगिनत महिलाओं के लिए एक नई रोशनी बनकर सामने आया है।

"अगर हर घर में एक विनीता जी हो, तो शायद कोई भी वर्षा अकेली न रहे।"

लेखिका:
नंदिता आकाश चौबे
(प्रसिद्ध हास्य कवि स्व. प्रदीप चौबे जी की बड़ी बहू)